कही और पाया मेरा ईश्क उसका तमाशा बन गया
क्या खूब इसकी रहमत का मरहम पाया भरोसा टूट
गया उसने मुझ को इस कदर तन्हा किया, मेरे पास
क्या कुछ नही क्या सब उसकी सरहद से बाहर है
मेरे लिए किसी तरह तो ईनतज़म होता उसकी रहमत
को किसी का भी हौसला न पाया, यँहा सब खरीद दार
है कोई किसी का नही, उसको आज कितना बेबस पाया
मल्लिका जैन