रविवार, 10 फ़रवरी 2019

💮पढ़ाई 💮

💮पढ़ाई 💮
मुझ को पढे अरसा हो गया, अब भी किताब
अच्छी लगती हैं,अम्मा बाबू जी का किताबो
के प्रति लगाव याद आ जाता हैं,बाबू जी की
रीडर डाइजेस्ट,धर्म युग, और कुछ उपन्यासों
भी,अम्मा के पुराण और कथा, उपवासों पर
होती पूजा, अम्मा का कथा सबको सुनना याद है,
बड़ी बहन का सबको साथ लेकर चलना,भाई का
फिर कोई न कोई बहाना बना देना, पीता की जाने कितनी
डांट के बाद भैया का डाक्टर बन जाना,
सब कुछ अच्छा ही हुआ,
कोई कुछ तो कोई कुछ बन ही गया,
पर अब भी समस्याओं का सिलसिला टूटा नहीं,
पीता की पेंशन,और बड़ी बहन की पेंशन से घर का
खर्च चलता है,और क्या कहे मेरे मोबाईल का बिल
भी उसकी ही जेब से जाता हैं,अम्मा की दवाई भी
लाती है,अब तो और बड़ी हो गई है ,लोगो के भी
दर्द बांट लेती हैं,
समय बदल गया, लोग भी कुछ नए मिल गए,
एक मै ही जाने कब से खुद की तलाश कर रही हूं
पता मिलता ही नहीं।
अपने बेटे से कहती हूं कुछ तो पढ़ ले,
जवाब में उसके कुछ गाने सुन लेती हूं,
और फिर मेरा खुद का गानों के साथ पढ़ाई करना याद
आ जाता हैं
तो कुछ सपने मेरे कुछ परिवार के
पढ़ाई के नाते रिश्ते अब न्यू टेक्नॉलाजी से जुड़ गए
पर किताबे अब भी वही है,और उनकी अहमियत भी
वहीं।

Mallika

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