यू तो खुदा कि इबादत हम रोज़ किया करते है
मगर इंसा होने एक गुम क्यों खो देते है।
मै कंहा कहता हूँ कि तुम खुदा को याद न करो मगर ,
एक रोटी तो गरीब को भी नसीब हो तो बेहतर,
इस रोटी कि महक में गरीबका खुदा बस्ता है
तुम भी कुछ जन्नत का इंतज़ाम करो तो बेहतर,
मै थक के हर रोज़ बिस्तर पे नींद तलाश करता हूँ ,
उस गरीब का एक कम्बल का आसरा हो तो बेहतर। ..
तमाम उम्र का सफ़र है अब और क्या चाहत बयां करू,
अब सबको इज़ज़त का कफ़न नसीब हो तो बेहतर
मगर इंसा होने एक गुम क्यों खो देते है।
मै कंहा कहता हूँ कि तुम खुदा को याद न करो मगर ,
एक रोटी तो गरीब को भी नसीब हो तो बेहतर,
इस रोटी कि महक में गरीबका खुदा बस्ता है
तुम भी कुछ जन्नत का इंतज़ाम करो तो बेहतर,
मै थक के हर रोज़ बिस्तर पे नींद तलाश करता हूँ ,
उस गरीब का एक कम्बल का आसरा हो तो बेहतर। ..
तमाम उम्र का सफ़र है अब और क्या चाहत बयां करू,
अब सबको इज़ज़त का कफ़न नसीब हो तो बेहतर
Mallika