शनिवार, 7 दिसंबर 2013

नसीब हो तो बेहतर

यू तो खुदा कि इबादत हम रोज़ किया करते है
मगर इंसा होने एक गुम क्यों खो देते है।

मै कंहा कहता हूँ कि तुम खुदा को याद न करो मगर ,
एक रोटी तो गरीब को भी नसीब  हो तो बेहतर,

इस रोटी कि महक में गरीबका खुदा बस्ता है
तुम भी कुछ जन्नत का इंतज़ाम करो तो बेहतर,

मै थक के हर रोज़  बिस्तर पे नींद तलाश करता हूँ ,
उस गरीब  का  एक कम्बल का आसरा हो तो बेहतर। ..

तमाम उम्र  का सफ़र है अब और क्या चाहत बयां करू,
अब सबको इज़ज़त का कफ़न  नसीब हो तो बेहतर
 Mallika


मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

इंतजार रह गया

 इंतजार रह गया  


तमाम  उम्र  का  किस्सा  अनकहा  ही रह  गया
न मै  उसको  समझ सका न वो मुझे

कही दूर दिलो  में कुछ टुटा रह गया।
एक अजाब सा मंज़र रह गया

बस रेत  सा फिसलत  वक़्त रह  गया
न वो मुझे अब पुकारता है न में उसे

चंद  सांसो का पिंजरा रह गया
न  जिंदगी का शोक मुझे अब रहा

बस रुख्सत का इंतजार रह गया।
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मंगलवार, 6 अगस्त 2013

फलसफा रह गया



फलसफा रह गया


हमने चाहा  था क्या ये क्या हो गया
मंजिले इश्क का फलसफा रह गया 

यु अचानक उजाले ने करवट ली
अंधेरो से वास्ता रह गया

मै  न  पाऊँगी उसे ये दर्द है
इस दर्द का फसाना रह गया

चलो तुमसे को वादा  करे 
इस इरादे का ख़्वाब रह गया

तमाम उम्र गुजरेगी तन्हाई में 
तेरे साथ गुज़ारे पालो का हिसाब रह गया

मै तुझे पाउँगा कभी शायद बस 
इस एक बात का इंतजार रह गया 


बुधवार, 10 जुलाई 2013

रहने दो

रहने दो 



में पत्थर तो नहीं मगर तुम्हे याकि केसे हो
तूने मुझे कभी छुकर देखा ही नहीं

मोम सी बन कर जाने कितनी बार में जली
तुमने कभी वो पिघलता मर्म नहीं देखा

रुको अब बस रहने दो ये सब बाते
न आज तुम कुछ कहो न आज में कुछ सुनो

भावनाओं के प्रवाह में सब सपनो को बहने दो
ये धरा तेरी मेरी धरा है, इस दिल को ज़मी पे
कुछ अधखिले फूल रहने दो 
यंहा बस कागज की कश्ती है और
इस तूफा में पतवार भी नहीं

कही बहा न ले जाये ये तूफा हमें
छोड़ो अब ये तमाम फलसफे रहने दो
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मंगलवार, 25 जून 2013

कभी कभी

 कभी  कभी


इश्क का ले के सहारा कभी  कभी  ;
हम  ने तुमको   पुकारा  कभी  कभी ;

इतनी मुश्किल है की जिए केसे फिर भी ;
हम  ने  लिया  है  नाम  तुम्हारा  कभी  कभी ;

तूफ़ान  का  खौफ  है अभी  शायद
आता  है  सामने  जो  किनारा  कभी  कभी ,

अब  क्या  कहें  दिल मिज़ाज  को ,
अक्सर  ये  आप  का  है ,हमारा  कभी  कभी ;

फरियाद है तो बस इतनी
की तेरी  महफ़िल हो मेरा गुज़ारा कभी कभी
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मंगलवार, 18 जून 2013

दस्तक

 दस्तक

 


चाँद उतर आया खिड़की पर , सर्द हवा दस्तक दे जाती है
चादर पर सिलवट पड़ जाती है, और तकिया नम हो जाता है

एहसास,तुम्हारा ही नाम लेकर दिल ही दिल में बातें करते है
रुक रुक कर धीरे धीरे मेरा जीना मरना दुशवार करते है

किस कदर हैरत से गुज़रती है ये जिंदगानी 
मन के सितार में सुरों की माला, सब महफ़िल  को बेजार करते है 

दर बा दर

 दर बा दर

खोज रहा मन गंध सुहानी
पनघट नदिया , गागर
मेरी प्यास भटकती दर बा दर

ये केसा अंजना सा भ्रम है
मेरी रूह  भटकती दर दर
लबो की मुस्कराहट की
कीमत गले में बान्हे तेरी
इसी चाहत में मेरी साँस
भटकती दर दर ,

सुलगता जिस्म खामोश राहे
दिल का कुसूर,वफ़ा के नाम पर
तरसता दर बा दर

जज्बातों की अंधी ,तबस्सुम के चराग
सब के सब, समय की मार
के सताए भटकते दर बा दर

ये  सोहबत का असर है की
की सुकून भटकता दर बा दर दोस्तों .
आज भी मिलता है तो कहता हूं
कुछ अपना हाल, ही बता दे,
कमबख्त मुस्कुराहट के सिवा कुछ
और किस्सा भी बंया कर ...

शुक्रवार, 14 जून 2013

शिकायत

 

शिकायत


यकिनन  वो मुझ से हर रोज मिलता है
मगर  चेहरे से उदास लगता है
मुझसे शिकायत तो बहुत है उसे
मगर खामोशियो का अशिया लगता है
न अपना पता देता है न मेरी खबर लेता है
जाने किस दुनिया में रहता है
गुजारिस है अब की मुझे बुझा ही दे
की में यऊही मुकमल हो जाऊ
एक ये ही सही कुछ सिलअ तो मिले
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इश्क

इश्क

ये  केसा  मकाम  है   इश्क  का
वो  तनहा  रहा  उमार  भर  के  लिए
और  मेरा  पता  हाथ  में  उसके  लिखा  था
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तय तो कर  रहे है हम ये जिंदगी का सफ़र  रफ्ता रफ्ता
मगर न प्यास बुझती  है न जहन  खामोश रहता है
तमाम  जिंदगी यही सिलसिला चलता रहता है
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में आँसू अपने देखा कर थक गया
चल अब तो कोई मुस्कुराता चेहरा देखें
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हर किसी से इस अदा से न मिला करो तुम
वर्ना क़त्ल सरे आम हो जायेगा

आपका कुछ नहीं जायेगा हमारा तो सब  कुछ जायेगा
आप से तो किस्सा भी बयां न किया जायेगा

आप ने कहा तो नहीं साथ चलने मगर
अब तनहा पशेमा कंहा जायेगा
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कितने बेखबर हो मेरी दुनिया से
है बहुत वक़्त तुम्हारे पास औरो के लिए
बस मुझे ही तनहा किया तुमने
मेरी चाहत परेशां हो गयी
तुमसे मोहबत करके में परेश हो गयी
अब न अपनी ही रह सकी
न तुम्हारी ही हो गयी
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मानो तो सही

उम्र के दौर में क्या शिकायत तुमसे करू यू तो तमाम मसले है सुलझाने को पर  तुम सुनो तो सही कन्हा तक तुम्हे पुकारू  तुम कभी आओ तो सही, क्या मै ग...