कुछ और की चाहत और ज़िन्दगी
सब कुछ वक्त से मिलता जुलता लगता है हर बार एक सच सामने आ जाता है, और हर बार खुद को झूठ लगता है,
कहते कुछ और ही है,समझ कर भी अब चुप रहने की कोशिश करने लगे हैं,न वक्त ही हमारा होता है,न वक्त
सब कुछ वक्त से मिलता जुलता लगता है हर बार एक सच सामने आ जाता है, और हर बार खुद को झूठ लगता है,
कहते कुछ और ही है,समझ कर भी अब चुप रहने की कोशिश करने लगे हैं,न वक्त ही हमारा होता है,न वक्त
की कोई ततबिर बनती, सोचती हूं अक्सर किसे दोष दू
किस्मत को वक्त को या फिर किसी को नहीं,
सबकी सोच को जांच परख लिया, अब क्या और तलाश करू
अपनी ही तलाश को नाम क्या दू,