शुक्रवार, 7 जून 2019

परिवार

आज कुछ समय से मैं सोच रहा,
उम्र के दरवाजे पर, कुछ देख रहा,
बच्चो और परिवार के सदस्यों को
समेटे कर चलती बिटिया को सराहा
लेता हूँ, मन की पवित्र स्थली में कुछ
पल और समेटे लेता हूँ, जाने कब समय
बदल जाये पत्नी को भी निहार लेता हूँ,
कहता कोई धर्म और और कोई कुछ,
मैं तो बस अपनी बनाई दुनिया मै
सब पा जाता हूँ,
अपनी मेहनत की कमाई पर नाज है मुझे,
क्या कहूं उसे, बनाई एक पवित्र स्थली,
रहने को, जतन से कहते बच्चे,छोड़ो उसे
तो में लम्बी सांस ले चुप हो जाता हूँ,
मेरी मेहनत की कीमत क्या कोई लगाएगा,
मै आज भी अपने परिवार मैं जी लेता हूँ

मानो तो सही

उम्र के दौर में क्या शिकायत तुमसे करू यू तो तमाम मसले है सुलझाने को पर  तुम सुनो तो सही कन्हा तक तुम्हे पुकारू  तुम कभी आओ तो सही, क्या मै ग...