रहने दो
में पत्थर तो नहीं मगर तुम्हे याकि केसे हो
तूने मुझे कभी छुकर देखा ही नहीं
मोम सी बन कर जाने कितनी बार में जली
तुमने कभी वो पिघलता मर्म नहीं देखा
रुको अब बस रहने दो ये सब बाते
न आज तुम कुछ कहो न आज में कुछ सुनो
भावनाओं के प्रवाह में सब सपनो को बहने दो
ये धरा तेरी मेरी धरा है, इस दिल को ज़मी पे
कुछ अधखिले फूल रहने दो
यंहा बस कागज की कश्ती है और
इस तूफा में पतवार भी नहीं
कही बहा न ले जाये ये तूफा हमें
छोड़ो अब ये तमाम फलसफे रहने दो
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