बुधवार, 10 जुलाई 2013

रहने दो

रहने दो 



में पत्थर तो नहीं मगर तुम्हे याकि केसे हो
तूने मुझे कभी छुकर देखा ही नहीं

मोम सी बन कर जाने कितनी बार में जली
तुमने कभी वो पिघलता मर्म नहीं देखा

रुको अब बस रहने दो ये सब बाते
न आज तुम कुछ कहो न आज में कुछ सुनो

भावनाओं के प्रवाह में सब सपनो को बहने दो
ये धरा तेरी मेरी धरा है, इस दिल को ज़मी पे
कुछ अधखिले फूल रहने दो 
यंहा बस कागज की कश्ती है और
इस तूफा में पतवार भी नहीं

कही बहा न ले जाये ये तूफा हमें
छोड़ो अब ये तमाम फलसफे रहने दो
https://spritualcounselling.wordpress.com/blog/

मानो तो सही

उम्र के दौर में क्या शिकायत तुमसे करू यू तो तमाम मसले है सुलझाने को पर  तुम सुनो तो सही कन्हा तक तुम्हे पुकारू  तुम कभी आओ तो सही, क्या मै ग...