ज़र्रे ज़र्रे में हर्फ़ से,उकेरी गई सलीके से सवारी गई,कही माहताब और कही अप्रतीम उपमा सी,पर जब भी सवाल आया कोई उत्तर में निरुत्तर सी हो गई, फिर भी स्वर उत्सुक हो जाते,खामोश बोल पड़ती, अब दुःख सुख
के अहसासों को निभाती,नारी क्या कहे उम्र के दौर
से तोली गई, कही मोटी औऱ कहि पतली, जाने कितनी
उपमाओं में परिवर्तित हो गई, खूबसूरती के कसीदे
पढ़ गई,जाने कितने परिवर्तनो से सोच और को निखारने
लगी,नारी पुरुषों से कन्धे मिला कर भी चलने लगी
और भी जाने कितने शब्द है सब मे निखर गई
ये नारी है जो सब समझ गई,इसमे शक्ति पुरूष
को गढ़ने की और पुत्री को सँवारने कि, नारी बस
नारी बन गई🤰👸👰👩🚒👩💼👩🏭👩🔧👩🍳👩🌾👩⚖️👩🏫👩🔬
मल्लिका जैन👩👩🎓👧