रविवार, 28 जून 2020

😀मन बहलाने को 😄

🤔मन बहलाने को जब मोबाइल भी साथ न दे,
क्या करें,किसी को कुछ कह नहीं रही मेरी मज़बूरी
कोई समझ पा ता नहीं,उम्र का तकाज़ा हैं, चुपचाप
रहती हूं तो भी, वहीं होता है,बोलती हूं तो भी वही
होता है,कोई जाने कान्हा से हंस देता है,कोई जाने,
कान्हा से गुस्सा हो जाता हैं,समझ ही नहीं पाती,
समझ दार कोन नादान कोन,क्या सच में मन
बहल पाता है या फिर मै अपनी ख़ामोशी को 
बांट रही हूं,या शोर जिसको कहते है,वो चुप हो
गया आज हवाओं का रुख कैसे बदल गया,
ओहो,कब तक जाने दू, ये लोग भी तो समझ ते,
नहीं,आज सोचती हूं,की हंस लू तो क्यों? रुलाते
हो,?क्या हंसी पे सिर्फ तुम्हारा हक है, नहीं,तो,
सच मुच की हंसी से मिलो कभी,अरे यार "सोनू"
आज तुम भी तो हंसो,😄 
मल्लिका जैन 😀

शुक्रवार, 26 जून 2020

😄मेरी सोहबत 😄

🤠मुझसे अक्सर सच का वास्ता पड़ जाता हैं,
राह में कहीं रहता है और झूठ से भी दोस्ती रखता
है ये मेरी सोहबत का असर या उसका करम खह नहीं
सकती,वो रुकता नहीं,में रोकती नहीं,कभी नज़रों
में आ जाता तो कभी छुप जाता हैं मुझे जिनकी जरूरत
नहीं उनको दे जाता,जिनकी उसे जरूरत नहीं उसे लेे जाता, कमबख्त न खौफ में जीता है न मुझ को
खुद जीता है,हर हाल में खुश रहने का हुनर उसको
आता है, और लगता है कि उसको मेरी सोहबत रास
नहीं आती,फिर भी करू क्या मुझ को तो रास आती हैं,😄,वो जीने के बहाने बना देता है और में मौत से दोस्ती
कर रही हूं,फिर भी कैसी कशमकश है खुद ही अपनी
सोहबत में जी रही हूं, ख्वाबों को सजा लेती हूं,फिर
नया ख्वाब बन जाता, कैसे रुके सवाल बस सोहबत
का बाकी रह जाता हैं 😷
मल्लिका जैन 😀

मंगलवार, 23 जून 2020

😁ये हसीं अच्छी 😄

,😄ये हंसी अच्छि हैं रोज ही किसी न किसी होंठ
पर सज जाती हैं, खिलखिलाती तो कहीं बस
मुस्कुराती है,कभी कभी सच्ची और कभीझूठी
पर कुछ भी हो अच्छी हैं जो कड़वाहट को मिटा
दे,ऐसी हंसी अच्छी हैं,जो जीना सीखा दे ऐसी हंसी
अच्छी हैं 😄
मल्लिका जैन 😁

सोमवार, 22 जून 2020

🤫अलग अलग फलसफे🤔

😄कैसी जिस्त्त हैं कि थमती नहीं,
केसा रुतबा है की रुकता नहीं,
मै भी जिसे तलाश करती हूं वो
भी,तो कुछ ऐसा ही है,कहते है,
सब जिसे कहते आज,वो भी है,
फिर भी,अजीब ओ गरीब है,
मेरे लिए क्या हैं,पता नहीं है,
बस फिर से चलते जाना है।😀
मल्लिका जैन😄



शनिवार, 20 जून 2020

😀कुछ ऐसा ही😀

,,😄अक्सर देखते हैं ज़िन्दगी तू कैसे सपने,सजा लेती,
कहीं अपनों को तो कहीं दूसरो को मिला देती,
अच्छी बाते करती अच्छी लगती हैं, पर कभी
कभी कुछ ख़ामोशी भी बिखरा देती,फिर भी,
तुम अच्छी हो 😄
मल्लिका जैन 😊

गुरुवार, 18 जून 2020

दस्तखत ✍️

अब कोई किसी कि सोहबत क्या करू,अपने
ही दस्तखत,बना देती हूं,जब जैसी जरूरत हो
तब,खुद को निखार लेती हूं,कहते हैं लिखावट 
कहीं बेतरतीब तो कहीं सुन्दर होती हैं,इनको
कैसे बताए की दिमाग के किसी दबाव का
परिणाम होती हैं,कहीं कोई जब अपने विचार
धारा लिखता है,तो वो उसके वातावरण का भी
प्रभाव होता है,ऐसे ही जब कहीं कोई परवरिश
पनप जाती हैं तो  लिखावट में उसका भी,
अपना मकाम होता है,ये सच है कि कुछ
कहीं तो कुछ कही दर्ज हो जाती हैं,फिर जब
कभी मौका मिला तो उसी पल से जाग जाती
है,तब तक तो समय ही बदल जाता हैं,और बस
ऎसे ये फिर से कुछ लिख जाती हैं ✍️
मल्लिका जैन ✍️

मंगलवार, 16 जून 2020

एक मै हूं

एक मै हूं सोचती समझ ती जाने क्या हूं,
खामोश ज़ुबां नहीं फिर भी चुप हूं,किसको
क्या बोले,सब,ही अपनी यात्रा पर निकल पड़े,
कहीं,अपने लिए थकान मिटाने का सबब तो
कहीं,कुछ न दौलत न शौहरत,ये तो अपनी ही
दास्तान बनाने निकल पड़े ।
मल्लिका जैन

सोमवार, 15 जून 2020

😠 कितना और😡

और कितना गीरोगे जितने की चाहत में,
न मुझ को किसी की जीत से मतलब न
ही किसी की हार से बिना वजह मुझ को
बदनाम कर दिया किसी कि मदत करने
की इतनी बकवास सजा दी,की अच्छाई
को ही नीलम कर दिया,आज सच बिकता
नहीं लोग बेच देते है,ईमान खुद का नहीं,
और रुतबा,कितना रखते हैं,मेरे साथ,लड़ाई
रही नहीं,और दोस्ती निभाना किसी को आता
नहीं,सब किसी से डर जाते हैं,अपने ही चाह त
को देखते भी है,क्या,या यूं ही काम चला लेते हैं
अपने सच के साथ जीना आता नहीं और अपनी
दुनियां बनना चाहते है, यहा सवालों की जगह हैं
ही कान्हा,किसी का सच किसी का जूठ,सब फरेब
सा लगता है,मुझ से जीत नहीं पाते तो रात हो या
दिन नियम बदल देते है,फिर कोई रूप बना या तो 
घर या बाहर कहीं निकल जाते हैं,किसके पास इतनी
फुर्सत है कि सच का सामना करे,अपने जितने के 
लिए कतल सारे आम करते है, मौत तो तांडव रच ही
नहीं रही,जाने कोन अपना तांडव रच ना चाहता है
क्या सोचता है कोई की किसको कितना पाना है,
यहां रहो या वन्हा,फ़र्क क्या पड़ता है,जब सब को
एक ही जगह जाना है क्या मजहब के नाम,पर
स्वर्ग नरक अलग अलग बनते है,या फिर,उस सुप्रीम
से सब डर ते हैं,सोचो कि उसमे भी तो कुछ सोचा
ही होगा तब तो दुनिया को बनाया होगा,अपनी भूंख
कितनी है,या फिर किसी कब तक के सवालों से परे
कोई जहान कहीं तो होगा, तकनीक ही तो हैं,फिर 
भी क्यों,सवाल अधूरे हैं,क्या किसी समय वीशेष
में ही जीत जाओगे,या फिर चुप चाप सही गलत
सब सह जाओगे,कभी आराम मिलता किसको है
और आराम के नाम पर तमाशे कितने फैला दिए
कहीं डर के कहीं जूठी सच्ची मोहब्बत के मज़मे लगा
दिए किसी को बाई तो किसी रानी किसी को राजा
किसी को क्या बनाओगे,मेरे पास तो जानकारी पूरी
नहीं,पर जिनके पास है वो कैसे जीते हैं,क्या उनके
अपने भी कभी खुश होते हैं?
मल्लिका जैन

रविवार, 14 जून 2020

👹ये इश्क़ का बाज़ार👺

सोहबत,इश्क़ की अक्सर हसीन होती हैं,
अक्सर अपने खुद के ही साथ रहती है,
तुम ही कहो कभी देखी है, सिद्दात की,
चाहत,अपने पहलू में सपने बुनती हैं और
दूसरो को कभी अमर,तो कभी कुछ और,
ही बना देती हैं,सियासत इसकी सारे जहान
में फैली है,और खुद अपने से जीने मारने का
पता पूछती है,मिल गई थी एक दिन मुझे भी
अपने समस्त सजो साज के साथ,बस बुन
अपना ही राग फिर चल देती है,किसी के हांथ
आती नहीं,धोखा दो या मोहब्बत करो इसको
खबर हो ही जाती हैं,सिर्फ एहतियात इतनी
ही रखना इसके अंदाजे बयां अलग ही किसी
की समझ आएंगे नहीं,कोशिश कितनी भी करो
इसकी ज़िद उसकी ही मर्जी है न किसी पे लाद
रही न किसी को पाल रही,बस  अपनी ही
 ख्वाहिशों में जी रही

मल्लिका जैन

👿कुछ तो नहीं👿

आज फिर से कुछ नहीं समझ नहीं पाई, शिद्दत से
चाहत और मुस्कुरा नहीं पाई,पल पल सपने बुने,
और फिर से देख, कह कर खामोश सजा पाई,ये
क्या खूबसूरत सी शोहरत बिखर रही हैं,देखो, शाम
फिर से हसीन हो गई,आ गई कही चुप चाप, कहने
सुनने को, ये तेरी दास्तान किस क़दर सवार गई,
यादों का गुलदस्ता,लेकर निकल गई, चल छल मत
तेरे लिए तो,कहानी फिर से कोई बुन गई,देखो तो
मेरे पास भी मुकाम नहीं तेरे पास भी मुकाम नहीं,
देखो,जाना मुझे भी हैं तुझे,और कितनी देर लगाएगा,
अब अपने घर को लौट जा,बहुत हुआ,याद कोई और
भी करता होगा, तबस्सुम होंठो पे सजा,फिर मुस्कुरा😀
मल्लिका जैन

शनिवार, 13 जून 2020

अत्रप्त इच्छा

सोचती हूं,जीती हू या मर जाती हूं,जाने क्या करती हूं
लोगो का उद्देश्य तो मुझे पता नहीं,पर मै कहीं तो रहती हूं
कैसे,क्यों,कब याद नहीं,फिर भी चल रही हूं,कहीं ख़ाली
तो कहीं मुक्त सी जीवन शैली,जी रही हूं,ये सब आसान
लगता है,फिर भी,कुछ चुप चाप समझ रही हूं, मान या
सम्मान भी छोटा हो गया,इंसान जाने क्या हो गया,मुझ
को कोई रोकता है या मै कहीं खुद रुक जाती हूं,आसमान से उतर आई धारा पर,पर अब तो जाने का
समय हो गया, हैं फिर भी जीती हू, हैं कौन वन्हा जो मुझे
आवाज़ देता है,या फिर ये भी कोई धोखा सा लगता है,
तमाम बातें विश्वास कर नहीं पाती,धोखे या सच, कैसे
बन जाते,पता नहीं चल ता,फिर उम्र के आगे जाना बाकी
हैं, ज़िन्दगी तू जीती, अब मै हारना चाहती हूं,सच में अब
थक गई हूं,जीने के बहाने तो बहुत है,पर आज भी में
कुछ और तालाश रही हूं,अब तो बहुत हो गया,कभी तो
मुझ से भी नज़र मिला, कही तो मुस्कुरा ले,
मल्लिका जैन

बुधवार, 10 जून 2020

😄 मुक्त संसार 😄

😄आज कल लगता है, हर किसी को डर,अपने और अपनों से,फिर भी, कही किसी कोने में,प्यार पनप ही 
जाता हैं,कोई हंस के और कोई रो के ज़िन्दगी गुज़ार
ही लेता है, मै हर रोज देखती हूं,खुद को खुद को
सुधार ने कोशिश करती हूं,ज़िन्दगी से नाराज़ नहीं पर
कुछ कमी तो है अब भी जिससे ऊबर नहीं पाई,या फिर
जाने कोन है, जो समझ कर भी, नजरअंदाज कर दिया करता है,आज तो मुस्कुरा रही हूं,जाने किस्मत से नाराज़
हूं,या मुझ से वो,शायद मेरे अपनों सी बाते, फिर जीत
जाऊंगी ऐसा नहीं ऐसा ही है,अब बेहतर से भी बेहतर
कोई जाने तो बात बने,मेरी अपनी ही ज़िन्दगी चल
फिर,कुछ तो बात बने😄
💖मल्लिका जैन 💖

शनिवार, 6 जून 2020

😄मेरे पास क्या😄

😄लोगो को लगता है अक्सर, मै खामोश क्यों हूं,
तमाम बातों में जो मुझ को खींच लेते हैं,उनकी 
हकीकत क्या, मुझे समझ नहीं,पर उन समझ
दार की हकीकत क्या,जब कभी अपने आप से
आंखे मिलाएंगे,खुद से कहेंगे क्या,सच और झूठ
में बारीक लाइन,भी जब मिट जाए,तो फैसला ही 
क्या करना,फिर भी यदि ज़िन्दगी संवर जाए तो,
तो जाने देती हूं, माफ़ी तो मेरे पास अब भी नहीं,
पर तमाम के सामने मै क्या, मुझे समझ आए,
इससे पहले जो डर जाए,वो एक फसाना ही क्या,
अपने आप ही जो जानता होगा,कहीं तो, आंख
झुका लेगा,जीत की ख़ुशी में को गम में कर शामिल
वो किसको बताएगा,जो झूठ का सहारा बार बार,
ले,उसकी हकित कभी तो उसे और मुझे याद भी
आएगी,इस्त्री होना या पुरुष होना,कसूर तो नहीं,
लेकिन,बिना वजह मुझ पर अपनी मर्जी लादना
खूबसूरत धोखे से कम भी नहीं,फिर,भी मै,ज़िन्दा
हूं,किसी दिन इस दुनियां को अलविदा कह जाऊंगी,
फिर दुबारा कभी नहीं आऊंगी,
😄मल्लिका जैन😄

बुधवार, 3 जून 2020

😄दास्तान ऐसी भी😄

😄सपनों से शुरू हो कर हकीकत,बन ती हैं,
बच्चो से सपने बुन लेती है,रोती हस्ती गाती,
कहीं दूर निकल जाती हैं, दिमाग के किसी कोने,
में बैठी मुझे सच और झूठ में फ़र्क करना सीखा देती हैं
मेरे सच कैसे भी हो, लोगो की अपनी ही बाते है,
कहीं कुछ तो कहीं कुछ, कैसे,किसको कहे,
सादगी इतनी सस्ती नहीं,और महगांई भी महंगी नहीं
देखने और समझे तब जान पाओगे, अपनी अक्ल
की बाते जाने देना नहीं तो मेरी तरह झूठे कह लाओगे,
इतनी सी बात है दुनिया में जीने का सलीका सीख कर
ही जीना है,और अपनी तकदीर भी बनाना हैं
तो मुस्कुरा की फुर्सत निकाल लेना और जीने का तरीका
भी,क्योंकि ज़िन्दगी और अंत दोनों अच्छे हैं दोनों
की दास्तान अच्छी हैं 😄
मल्लिका जैन

सोमवार, 1 जून 2020

💫 छोटी सी ✨

छोटी छोटी बातें बड़ी बन जाती हैं, ज़िन्दगी,
तेरी तरह मेरी भी कहानी बना देती हैं, मै हूं
कांहा समझ आता नहीं,अपनी ही समझ नहीं
तो बात क्या करू,लोगो की समझ से मुझे अब
भी नहीं,सरोकार,फिर भी सहायक हूं किस तरह
पता नहीं,चलती हूं जिस वास्तविकता पर,उसका
भी सच अजीब सा लग रहा,मेरे पास कुछ नहीं फिर
भी, ख़ाली नहीं,जाने को सारा जहान पड़ा,और कोई
रास्ता भी नहीं, कैसी व्यवस्था,जो अब भी अधूरी,
इंसान होना दुनियां की सबसे बड़ी नियामत,फिर
भी कहीं तकरार,कहीं प्यार,कहीं गुस्सा,और भी
बहुत कुछ,और मुझ को सरोकार भी नहीं, मै भी हिस्सा
बन नहीं पाई इस जहां का,अब भी मुझे तलाश कुछ
और है,अब जाना चाहती हूं यहां से,सिर्फ पता चले
जाना कान्हा?💫
😄मल्लिका जैन 🍀

मानो तो सही

उम्र के दौर में क्या शिकायत तुमसे करू यू तो तमाम मसले है सुलझाने को पर  तुम सुनो तो सही कन्हा तक तुम्हे पुकारू  तुम कभी आओ तो सही, क्या मै ग...