कीमत अब भी चुकाई जाती हैं, जिसको कहते सब
खुश रहना हो भी इन्सान से छीन लेते हैं, क्या बच्चे
क्या बूढ़े सब मनाते है, बस हकीकत छिपा लेते है,
रंग भी तीरंगे से बदल जाते है, कभी बेटा तो कभी
परिवार कभी धर्म जाने किस किस के नाम पर कोन
किसी की ख़ुशी बांट रहा कभी हमसे कभी किसी से
जाने दुनियां में क्या बांट रहा, न बांट ने वाले को
पता न लेने वाले को पता,कभी जानवर तो कभी
इन्सान तो कभी कुछ और कोन किस से लेता है,
मेरे लिए ही न खुद के लिए,शायद खुद को ही
मूर्ख बना रहा,अंधेरे उजाले सब एक बराबर,
जानें किस्मत से कोई खेल रहा, मेरे हिस्से मे क्या
आया उसके हिस्से में कभी कुछ था नहीं, मुझ
से कुछ पाया नहीं,मेरे,सरकार क्या किसकी खुद
उसकी भी हस्ती नहीं,जों ये बना रहा,उसको भी
अपनी पहचान नहीं, यांहा सच है, संसार से ही क्या
खुद से भी, वो जीत नहीं पाता,इसको वो जीना कहते
है,जों उसका है ही नहीं वो मेरा भी नहीं।😀
मल्लिका जैन