शनिवार, 7 दिसंबर 2013

नसीब हो तो बेहतर

यू तो खुदा कि इबादत हम रोज़ किया करते है
मगर इंसा होने एक गुम क्यों खो देते है।

मै कंहा कहता हूँ कि तुम खुदा को याद न करो मगर ,
एक रोटी तो गरीब को भी नसीब  हो तो बेहतर,

इस रोटी कि महक में गरीबका खुदा बस्ता है
तुम भी कुछ जन्नत का इंतज़ाम करो तो बेहतर,

मै थक के हर रोज़  बिस्तर पे नींद तलाश करता हूँ ,
उस गरीब  का  एक कम्बल का आसरा हो तो बेहतर। ..

तमाम उम्र  का सफ़र है अब और क्या चाहत बयां करू,
अब सबको इज़ज़त का कफ़न  नसीब हो तो बेहतर
 Mallika


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