क्या कही सच भी जिंदा रहता है,रोज कोई तन्हा
सच को जी ता है उम्र का तकाज़ क्या करू, जूठ
कितना छो टा है,तमाम बातें हैं, मै और क्या कहूं,
मेरी किस्मत को भी बांट लिया लगता है अपनों ने
गैर की बात क्या करू,कहती रही सब से मगर,
सब के धोखे हसीन है,और मेरा सच बस जी रहा
सबको अपनी ही धुन,और मेरी तलाश अब भी
कुछ और है, य न्हा उम्र बीत गई हैं और लोग कहते है
मैं ज़िन्दा हूं,आज किसी को क्या बोलूं रूठूं भी जाऊ
तो किस कोई अपना तो हो, न जीने की ख्वाहिश
न मारने की चिंता फिर भी किसी आफत सी ज़िन्दगी
आज सुकून के पल चुरा लूं, जीने की ख्वाहिश भी बांट दू
मगर दर्द के अल्फ़ाज़ नहीं होते,और ख़ुशी की तलाश
बाकी नहीं, न दुनियां को दर्द चाहिए न सुख ही,
सुकून मेरा, मुझे बेहद अज़ीज़ है,मेरे पास आज इसका
पता तो है,मुझ में जीने की ख्वाहिश में कितनों के
ख्वाब पूरे हो गए,और मुझे अब तक मेरा ही पता न चला
अस्तु....
मल्लिका जैन 🙏🙏🍀