बड़ी हो गई,अब भी रातों को नीद से डर तो नहीं पर,
अच्छा होना भी अच्छा सा लगता है,मेरे पास कुछ नहीं,
कुछ आराम के पल भी बचे नहीं,और, तरीके कितने ही
अपना लू सोचती हूं अच्छा ही होगा, चुनौतियां भी अक्सर,बनती बिगड़ जाती हैं,लोग धर्म ही क्या ईमान
के खरीददार हो नहीं सकते,अच्छाई भी अच्छी हैं और
उसकी तलाश मुझे भी, हैं अपने आस पास ही है,सोती
है पलकों में बंद आराम से कहीं, जागती अल्साई आंखों से,कभी जब डांट देती, हूं,कभी रो भी लेती हूं,पर कोई
अपना सा कान्हा है,बस एक मै और मेरी छोटी सी,
अच्छाई,आज कुछ तकलीफ़ सी हुई तो हैं,फिर भी चुप
हूं सोचती हूं शायद,फिर कुछ अच्छा जरूर होगा ।
😊मल्लिका जैन ✨