कथा है, उस गुणा जोड़ का अपना ही तराना है
कोई किसी की सुनता ही नही सबको किसी और
ही जहान की पड़ी है मुझे तो रास्ता मंजिल कुछ
दिखाई देता हैं, पर राह कोई छिपा देता हैं या फिर
किसी को किसी की पडी ही नही,जो कोशिश करू
भी तो कैसे क्या कोई सुनता भी हैं, क्या ये नम्बर में
हिसाब समा जाएगा या कोई फिर से नम्बर के
कथानक में उलझ जायेगा, मुझे जानने या समझने
की जरूरत किसी को नही है, सिर्फ नम्बर मेरे
पास कुछ कहते है, जाने क्या,इनकी उपासना है
या जिसे अधिकार था ही नही मेरी बात सुनने का
भी क्या वो मेरी बात सुनेगा भी,वो नम्बर क्या ऐसे
ही चलता रहेगा।
😁मल्लिका जैन😁